Thursday, 29 January 2015

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-52


1. हम चले तो दो कदम रब की और...?
वो हजार कदम बडेंगे हम सब की और

2.भई एक जगह ठहर...
तो कोई बात बने
बिखरे मन का इंसान,
इंसान होता कहा है

3.वो मर गया क्या तुमको ज्ञात है
जिसे सब इंसान कहते थै
उसको तो मरना ही था
पहले विश्वास कर मरा
फिर अविश्वास ले डूबा
बच जाता ग़र कोशिश करता
पर उसका अहंकार
उसे ले डूबा

4.हरिहर विश्वास हो अच्छा है
पर विश्वास मे विष का वास न हो
अन्यथा फिर से भटकन और घुटन शुरू हो जायेगी

5.भगवान तो है सच,पर विश्वास नही है...?

6.भोजन शरीर के लिये
भजन आत्मा के लिये
दोनों रोज़ जरूरी है

7.कौन कहता है आत्मा नही मरती
जिनकी इंसानियत मर जाती है
उनकी आत्मा मरी है

8.प्रेम की परीक्षा जगत की माँग है
ईश्वर के ह्रदय मे प्रेम ही प्रेम है

9.हम तुम्हे कितना प्रेम करते है
हरिहर मुझसे न पूछो,
ग़र जानना है तो
हमारे आँसुओं को जानो
रूकते नही आखों मे
तेरा नाम लब पर आते आते

10.हम अच्छे और सच्चै है 
तो सब अच्छे और सच्चे है
सब हरि का है उन्ही पर छोड़ दो

11.सत्य है जीवन जीना सहज नही है
यहाँ पर हम रोज़ रोज़ मरते है
पर जिसके कारण मरते है
वह मन 
फिर भी काबू मे नही आता

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