Friday, 25 July 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-30


1. तु निराकार है या साकार है,..
हरिहर ये लडाई है उनकी,...
मेरे लिये तो तू मददगार है


2. गम़ बता या गम़ छुपा,..
आ गम़ से दे गम़ मिटा,.
हरिहर .गम़ ये कया है श़ए..
जहाँ देखो गम़ का है अमबार लगा


3. इक पंछी जो नजऱ न आता है,...
पर घोसला बदला जाता है,...
जैसा घोसला वैसा नाम,,..
वो पंछी जग में पाता है,...
ज्ञानी कहता पंछी ये गजब.. 
दूर गगन का भेद बतलाता..
तेज बाहर नजर का उजयारा,..
देख नही कोई इस को पाये,..
पर बंद नजर से अंहद योगी,...
हरिहर सच रोज़ आंनद उठाये
ये पंछी बडा अलबेला,...
दुर गगन की सैर कराये,..
महाज्ञानी ये पंछी ....
रब का साकार कराये....


4. हँसते हो हम पर, हरिहर सच खुशी की बात है,..
बरसो हुए, आज भी हमारी यादे तुमहारे साथ है

5.मुझे दुश्मनों की जरूरत नही,..
मेरे नादाऩ मित्र ही काफी है,..मेरा सर झुकाने को

6. तेरा दुःख़ मेरा हो,..
मेरा सुख तेरा हो,.. 
ग़र ऐसी सोच तेरी हो,...
तो मान रोज नया सवेरा हो


7. गुरु मेरौ ज्ञान,गुरु मेरौ अभिमान,..
देह दिये गुरु मिले तो भी सस्ता जान.
हरिहर गुरु महिमा रब ही जाने, 
देह नही गुरु ज्ञान पहचाने..


8. जो तुमहारी मजबूरी है वही हमारी मजबूरी है
तुमहारी उनसे दूरी है हमारी तुमसे दूरी है

9. 

Monday, 14 July 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-28


1. तुझमे रब,शायद मुझमे रब, 
सब मेे हरि नुर समाया,.....
पर हरिहर जो उतरा अंहद,..
वही खोजी सुुरमा,खेल समझ पाया

2. हरि नाम अमृत,हरि नाम धी ,....
समय निकाल के सबके साथ पी,.

3.हरिहर चल नराज़ न हो ...
जाने दे ये दुनियाँ एेसी ही है,..
तेरे गम़ से कोई गम़ गाऱ न होगा
अकेले चल कोई तेरा यार न होगा

4.तेरे महलों की आबोहवा हम को रास आती नही,..
हम महा तयागी नही,हम फकीर ही हैै दूसरेेे किसम केे...
5. पर है तेरे पर पता नही हैै ..
पर तुुुझ को सजा नही,...
उड़ गगन में,....
धरा मे धरा , न धरा रह है,..
उड़ उच गगन मेें,...
हँस है तू नील गगन का,...
परम तत्व का परमँहस का,.
ध्यान धर्म,का ध्यान तू धर,..
जो करना है अंहद में कर,.....
उड़ गगन में, नील गगन में,

6. कया खोया है..जिसे ढुंढते हो...
हाँ ढुंढता हुँ मैं खुद में खुदा को...

7.बहुत कुछ तुमहारे आस पास घट रहा है..उसे खोज़ना है या कहो उस पर ध्यान लगाना है..वही बाहरी गुप्त ज्ञान है जैसे पक्षियो की आवाजे़,हवा का संगीत,धरती की खामोशी,और बहुत कुछ जो साकार अनुभव है जो तुमहे भीतर ले जा सकता हैः जहाँ कभी नही पहुचे जानो ईश्वर ने ही तुमहारा हाथ पकडा है यही अंहद के आंनद का प्रथम अनुभव है