Monday, 14 July 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-28


1. तुझमे रब,शायद मुझमे रब, 
सब मेे हरि नुर समाया,.....
पर हरिहर जो उतरा अंहद,..
वही खोजी सुुरमा,खेल समझ पाया

2. हरि नाम अमृत,हरि नाम धी ,....
समय निकाल के सबके साथ पी,.

3.हरिहर चल नराज़ न हो ...
जाने दे ये दुनियाँ एेसी ही है,..
तेरे गम़ से कोई गम़ गाऱ न होगा
अकेले चल कोई तेरा यार न होगा

4.तेरे महलों की आबोहवा हम को रास आती नही,..
हम महा तयागी नही,हम फकीर ही हैै दूसरेेे किसम केे...
5. पर है तेरे पर पता नही हैै ..
पर तुुुझ को सजा नही,...
उड़ गगन में,....
धरा मे धरा , न धरा रह है,..
उड़ उच गगन मेें,...
हँस है तू नील गगन का,...
परम तत्व का परमँहस का,.
ध्यान धर्म,का ध्यान तू धर,..
जो करना है अंहद में कर,.....
उड़ गगन में, नील गगन में,

6. कया खोया है..जिसे ढुंढते हो...
हाँ ढुंढता हुँ मैं खुद में खुदा को...

7.बहुत कुछ तुमहारे आस पास घट रहा है..उसे खोज़ना है या कहो उस पर ध्यान लगाना है..वही बाहरी गुप्त ज्ञान है जैसे पक्षियो की आवाजे़,हवा का संगीत,धरती की खामोशी,और बहुत कुछ जो साकार अनुभव है जो तुमहे भीतर ले जा सकता हैः जहाँ कभी नही पहुचे जानो ईश्वर ने ही तुमहारा हाथ पकडा है यही अंहद के आंनद का प्रथम अनुभव है

No comments:

Post a Comment