Monday, 2 February 2015

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-55


1.अंत का सफर ही अनन्त का सफर है
यूँ भी तो जीवन सफर है

2.आत्मविश्वास होना अच्छा है
पर जाँच ले कही वे धमण्ड तो नही

3.राजनीति कहती है सबका विकास हो
राजनीति करती है सबका विनाश हो

4.भरे जा रहे है हम पन्नों को
काश जीवन मे अपनाये
हरिहर क्यू न हर इंसा 
जीता जगता वैद पुराण हो जाये

5.कोसता है इंसा हर वक्त 
कुदरत के इंसाफ को
भूल जाता है क्यू वो
अपने कुकर्मो के हिसाब को

6.जीना जीवन का दस्तूर है
मत देख बीती गलतियों को
सब हाथ हरि,तू बैकसूर है

7.गहरी सोच,दिल की चोट
कभी न भूलनी चाहिये

8. क्यू राम राम कहते अंत सफर मे
याद रहे अंत नही वे अनन्त का सफर
राम राम आराम है आरम्भ है

9.खोज तो बस इतनी सी है
मै कौन हूं ...?
जान सका है कोई..?
जाने कितने फ़ना हो गये
ये ख़ोजते फ़लसफ़ा
चक्कर से घनचक्कर हो गये
ख़ोजते मै कौन हूँ
हरिहर मै बस मौन हूँ

10.सब कुछ तीन मे सिमट जाता है
1,2,3
फिर भी हम कितने महान है 
हमे 99 का फेर ही पसन्द आता है

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