Wednesday, 17 July 2019

जींवन हैं साहब

जग के तुफानो में
मजबूत पेड़ भी उखड़ते,..
फिर अंकुरित हो जड़ो से,
नये तनै बनते है,...
मिट जाती हैं जल कि धारा
जो कल कल कर बहती,..
सूर्य ऊष्मा से हो वाष्पीकरण,..
बादल के संग
फिर वर्ष बन बहती है
ये जींवन की धारा हैं
मिटती बनती रहती हैं
इसी चक्र को दुनिया
माया माया कहती हैं
वो काल नैत्र अंधा,...
हरिहर बिन समझे ही
मर जाता है,..
मिटने वाली चीजों
को अपना माल बताता है
वो पगला क्या जाने
सुखी रेत को जग मे
यहा कौन बांध पाता हैं
अन्त काल मे,..
मन का पँछी भी
बिन कहै ही
उड़ जाता हैं
रोज़ सवेरे उठते है
वो तुझको
आयना दिखलाता हैं
नाजाने कब
बचपन पर बुढापा
सा छा जाता हैं

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