Monday, 10 February 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-6


गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-6





1.चंदन उबटन खुब लगयौ 
....,तन को खुब सजायौ रे,
मिट्टी सा तन राख भय़ौ,
...काम नही कुछ आयौ रे,
हरिहर,रब नै भुलौ
बिति उमरिया,
अब काहै पछतायौ रे,


2.स्वयं को खोने से नही........
हरिहर स्वयं में खोने से ईश्वर की प्राप्ति होती है

3.संत वही है,हरिहर, जिसे दूसरो की वस्तुओ का लोभ नही,
............................और अपनी कोई वस्तु अपनी नही


4.पाप..की माँ.कामना...
पिता लालच.....है। 
हिंसा,ईष्या,वासना,अहंकार,भाई बहन है


हम सभी मानते है..
ईश्वर है..
हमारी श्रद्धा भी है किंतु फिर भी हम ईश्वर से, 
और ईश्वर हम से दूर और,असम्भव, कयूँ लगता ..?
कयूँकि मन मे विश्वास,बार बार अविश्वास पैदा जो करता है


दूसरो में कमिया नही, खुबिया खोजियें..........

ईश्वर...नजदीक हो या दूर ,भीतर हो या बाहर । यह अपवाद तो केवल ज्ञान हीन और अपवादी जन के लिए है ,हरिहर,के लिए वह है...है तो ......इतना ही काफी है

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