गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-7
1. रात, हमेशा रहे। असम्भव है
शरीर, हमेशा रहे।असम्भव है
पाप, हमेशा रहे।असम्भव है
क्रोध, हमेशा रहे।असम्भव है
अज्ञान, हमेशा रहे।असम्भव है
धन, हमेशा रहे।असम्भव है
दुखः, हमेशा रहे।असम्भव है
दरिद्र, हमेशा रहे।असम्भव है
जवानी , हमेशा रहे।असम्भव है
निरोगी काया, हमेशा रहे।असम्भव है
दिल ,पत्थर हमेशा रहे।असम्भव है
वक्त, एक सा हमेशा रहे।असम्भव है
2.आग जला सकती है। पर मिटा नही सकती॥
पाप जला भी सकता है और,हरिहर,मिटा भी सकता है
3.कुसंग सतसग एकै समाना....
हरिहर..जिस दैह बसै अभिमाना
4. प्रमाद मृत्यु है और अप्रमाद अमृत।
5.हरिहर अमृत जानियै,कैवल हरि कौ नाम।
मिथ्या सारा जगत है, हलाहल विष समान!!
6.जो रहीम उत्तम प्रकृति ,का करी सकत कुसंग ,
चन्दन विष व्यापत नहीं ,लिपटे रहत भुजंग।
7.कुसंग करने से तेज, तप, संयम, यश, सब कुछ खत्म हो जाता है,
इसलिए मर्यादा एवं संयम का पालन करना चाहिए।
8.हरिहर,तेज नाम का,आयै नाहि कौय़े काम।
राम राम रौम बसै, साचौ मनवा मिलै आराम
9.साधु-साधु सब कहै, भयौ न साधु तात
हरिहर,ऐसै साधु कया भयै,जो दैखे जात और पात
10.सुंदर तन नही, सुंदर मन देखने वाला ही
हरिहर,सच्चा ज्ञानी,सच्चा ईश्वर भक्त है
11.कोई आता है कोई जाता है
हर कोई हरिहर,हरि का खाता है,तू क्यों फिर अभिमान में मरा जाता है
कर अहंकार क्यों पाप कमाता है
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