Friday, 7 February 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-4

                         गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-4

 


1. आत्मा एक सुंदर और अमर दीया है जो सदैव प्रकाशमान है
,हरिहर,जो कभी बुझता नही केवल(शरीर) चिराग बदलता है

2. दूसरों पर हिंसा करना पाप है अपराध है तो अपनें पर हिंसा करना 
त्याग ,योग ,साधना,कैसे हो सकता है

3. दुनिया के नक्शे हिन्दु अल्पसंख्यक है,
अब हिन्दुतान में भी हिन्दु अल्पसंख्यक है ..? 
अपने देश में ही गाय,गंगा,गायत्री की रक्षा नही कर पा रहा है

4. पानी की बुंद सागर मिलकर ही पूर्ण:होती है ,हरिहर, आत्मा परमात्मा में

5. छोटे चिराग के सामने बड़ा चिराग रोशन करने से छोटे चिराग का अस्तित्व नही मिटता, अपितु दोनो का प्रकाश एक दूसरे में विलय हो जाता है और जग रोशन करते है हरिहर ऐसे ही बड़ा संत वही होता है जो अज्ञानी को भी अपने मे विलय़ कर अपने सा प्रकाशमान कर देता है,,,,

6. कोई किसी को सत्य नही समझा और दिखा सकता !हरिहर सत्य अपने आप प्रकट होकर अपना प्रभाव दिखा देता है

7. अगर भ्रम भी हो जाए कि भोजन में विष है तो हम उसे दूर कर देते है, किंतु सत्य जानते हुए भी मिथया वचन,पाप कर्म मिथया वचन,पाप कर्म क्या है हम उसे ग्रहण कर लेते है,तो हमारा ,हरिहर,,पतन होता है फिर बूरा क्यो लगता है.... ? यह ही प्राकृतिक है जो बोना है वही तो कटना है अब सोचो क्या बोना

8. सच पेड़ पौधे कम हो रहे है। पर जंगल नही पशु कम हो रहे है पर जानवर नही
शहरो नें जगलों का नाम ले लिया और हम ने,हरिहर, पशु का काम ले लिया

9. ईश्वर को हराना बहुत ही असान है!
बस हरिहर हम जीत की कामना छोड़ दे॥
वे खुद ही हार जाएगे...............

10. हीरा भले ही किचड़ में गिर जाए ,हरिहर, अपनी चमक नही खोता ।
इसी प्रकार संत ,ज्ञानी विपदा में फँसकर अपना सत्य का मार्ग (परमधर्म) नही छोड़ता॥

11.देह में प्राण है।तो ,हरिहर, हम प्राणी है। अन्यथा मिट्टी
मन में मानवता है। तो मानव नही तो पशु


No comments:

Post a Comment