Saturday, 15 February 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-8


गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-8
1. यदि जीनेके गुढ़ रहस्य जानना चाहते हो......?
तो बाह्य गंगा के साथ हरिहर,शरीर के भीतरी ज्ञान हरि गंगा 
में भी गोता लगाना आवश्यक है


2.विनाश की उल्टी गिनती आरम्भ हो चुकी है
मानव ही मानव के विनाश की तैयारी कर रहा है फिर ईश्वर को दोष कयूँ......

3.जिनकी अभिलाषाओ की सीमा नही है
 वही हरिहर संसार के बड़े भिखारी है

4.दुष्टता और शत्रुता का अंत शस्त्र से हो सकता तो हरिहर,हर युग में रामायण,
महाभारत सम युद्ध से हो जाता ....दुष्टता और शत्रुता का अंत केवल प्रेम से ही हो सकता है

5.कोई तुमें धोखा दे हरिहर तो गम़ न करना ।
हां गम़ तब करना जब तुम स्वंय को धोखा दो

6.तुम्हारा जीवन में किया एक भी नेक काम बेकार नहीं जाएगा !
यही नेक काम ही तो है जो सुली शूल, शूल को कांटा बनाता है

7.घट में घटना घट रही,और नित नित घटता जाए शरीर|
जा नै यौ खेल समझलियौ हरिहर,सौ ही संत,फकीर॥

8.कर सेवा नर सेवा, हर सेवा हरि सेवा......................

9.हरिहर,  हरि हर में है। घर घर में है चरा चर में है नर नर में है

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