Monday, 31 March 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-12


1. हरि, हर में है राम रोम समाये...कृष्ण कण कण,
 हरिहर पर मैं मारै पर ही सब अंहद में नजर आये


2. खोज़ अपने आप को है तू छुपा कहा...
बाहर जिसे तू खोज़ रहा.बाहर है वो कहा..?

3. कुछ देर अपनी आँखो के साथ मन को बंद कर..
अंहद मे लगा गोता...फिर हरिहर देख आंनद...

4. राम हमारे रोम में,पर खेल समझ न आये....
हरिहर जो अंहद में आयेगा वामै राम समाये

5. अंहद में पाया है तुझको..खोने से डरता हूँ...
खोज़ तो जारी..खोज़ में खोने से डरता हूँ

6. राजा के लिये वही जीत ,है पर संत के जीत अहंकार है 
और मै तो खोज़ में खोने से डरता हूँ, खोज़ में खोने ही तो ...भटकना

7.सभी हरि सिमरन करने वाले श्री हरि के प्रेमी है
 वही संत महात्मा है सभी संतो महात्माओ को प्रणाम..

8. चल चले जहाँ न तकरार हो 
बस मुंद आंखे..निहारे तुम .को.
तुमको तो है, हमे तुम से प्रेम अपार हो
अंहद की गहराई में गोते रोज लगाये
माना बाहर है रोशनी पर फिर भी अंधकार है
हरिहर भीतरी अंधकार मे महा प्रकाश है
उस महा प्रकाश में ही हमारे हरि का वास है

9. मैं.ने सब छोड़ दिया है प्रभु..तेरे लिये...कहते है लोग 
कया सच कहते है लोग..?सब छोड़ दिया पर मै को जोड़ लिया है

10.तुझे होगी भीड़ में दबकर मरने की इच्छा...
मैं तो हरिहर,अपने अंदर की भीड़को भगाना चाहता हुँ

11.यहाँ ...जल..रहा है
वहाँ ...जल..रहा है
जहाँ देख़ो वहाँ ...जल..रहा है
यू तो सारा जहाँ ..जल..रहा है
हरिहर पर मेरे बंधु गंगा यमुना में जल कहा रहा है....

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