Tuesday, 29 April 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-15


1. मैं हार मानता हुँ तुम ज्ञानी,महान हो.... 
तुम जीते मैं हारा,फिर.. तुम कयु परेशान हो..?

2. मुझे इतनी फुर्सत कहाँ कि मैं तक़दीर का लिखा देखूं..
मैं पयासा हरि नाम का मुझे फुर्सत कहाँ की कुछ और देखु

3. बदल ले अपनी सोच को...
कयु परेशां होता है..
दुनियाँ नही बदलेगी..
कयु दुनियाँ के लिए रोता है.

4. माँग पर माँग जारी है..
माँगना भी एक बीमारी है...
कोई रब से माँगता है... 
कोई सब से माँगता है...
जो बन रहे..दानवीर...
वो ही सबसे बडे़ भिखारी है
माँगना भी एक बीमारी है...

5. हरिहर कौन कहता है वो साथ नही देता...
अरे पागल मन तू अपनी आँखे कयु नही खोल लेता

6. गर्म रेत के कण ..
धीरे धीरे ही खिसकते है..
छोड़ दो वो रिश्ते..
जो बोझल,.सिसकते है

7. मार गोली जमाने को...
कया किसी से डरता है 
जब हरि ही तो अपना करता धरता है

8. चल परेशां न हो... 
हम हमसफ़र बनते है..
काँटे तो राह में आयेगे..
हम नही जखमो से डरते है..

9. जो करते है साथ निभाने के वादे,,,
वो कभी काम न आयेगे 
कोई साथ गया है.. 
जो वो जायेगे

10.कोई नही समझेगा..तेरे दर्द को..
तू खुद ही वक़्त का मरहम लगा..
अकेला है सफ़र तेरा..
तू अकेला ही चलता जा

11.सब और शोर है..बस शोर ही शोर ....
जिंदगी का पता नही किस और है...

12.चलो जहा़ बदले,
हवा बदले 
फिजां बदले
ना ले किसी से बदले

 

Saturday, 19 April 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-14

1. वो बाँझ को भी प्रसव की वेदना देताहै,
श्री हरि .. 
धूर्त को भी चिरन्तर साधना का सुख देता है
उसका नही कोई शत्रु ......
ना कर अपनी चिंता हरिहर
वो बिखरे को भी समभाल लेता


2.कर हरि सिमरण वही आयेगे,
किसे कब बाना बिगाडना है तुमहे समझायेगे

3. ग़म समभाल कर रख़ काम आयेगे,
ग़म भी गुरू गुरूर है ऱब तक पहुचायेगे

4. मारना अच्छी सोच नही अति अच्छी सोच है
पर मारो अपनी हवस को और गरीब की भुख को
 
5. तेरे भीतर आग है..तो कया दुनियाँ को जलायेगा
बन इंसा़ किसी गरीब की भुख तो मिटायेगा

6. मन मेरे परवाह ना कर,कोई कया कहैगा 
तू हरिहर मिट्टी है बस रंग बदले गा

7. मैं हरिहर वेला...सोचा,
जीवन ये कुछ काम में आवे..
माँ गंगा ने पुखे तारे..
हम काे गंगा बचाये, हम गंगा काे बचाये 
आओ संकल्प ले हम गंगा काे बचाये

8. मेरा काम राजनीति करना नही है .....
पर मेरा काम राक्षसनीति पर आखे बंद करना भी नही है
अध्यात्म सुख तभी प्राप्त होता जब(समाजिक शांति) समाजिक सुख प्राप्त हो..

9. मैं.ने सब छोड़ दिया है प्रभु..तेरे लिये...कहते है लोग 
कया सच कहते है लोग..?सब छोड़ दिया पर मै को जोड़ लिया है

10. पापी मन, पापी तन,पापी भयौ सब संसार रे, 
हरिहर कलियुग माही पाप भयौ हरि आन उबार रे,

हाँ मै पेड़ हुँ..हाँ मै पेड़ हुँ....1


हाँ मै पेड़ हुँ..हाँ मै पेड़ हुँ...

किसी पक्षी की बीठ से निकला...
माँ धरती के गर्भ समाया...
सूरज की किरणों ने सहलाया....
बादल की बुंदो ने पाला....
मंद हवाओ ने सहलाया..
हाँ मै पेड़ हुँ..हाँ मै पेड़ हुँ....1
कुदरत मेरे मात पिता...
मैने उनका सिंगार किया..
कही फुल खिलाये
कही फल अपार दिये
मैं कुदरत की प्रेम परीक्षा ...
झेल रहा हुँ इंसा़ को...
मैने उसको सासें दी...
वो मेरी सासें छिन रहा..
मैं पंछी का रैन बसेरा..
इंसा़ सबको लील रहा..
मेरी अाह़..और
उसकी चाह़ का कोई अंत नही
खुद को बाँट रहा..
हम को काट रहा..
पर ये कैसा इंसाफ है
तेरी तो चाहत है पर
कुनबा मेरा साफ है
हाँ मै पेड़ हुँ..हाँ मै पेड़ हुँ....1

Tuesday, 1 April 2014

इस अंत सफर से कैऊ बचने न पावे

हरिहर,चार चकोर चारण की यारी..
उठ मुसाफिर कर चलन की तैयारी...
काऊ न ताऊ काऊ ना ही भराता, 
दूर घनेरा काऊ साथी काम नही आता
हरिहर देख, देख सब है मुसकाये, 
इस अंत सफर से कैऊ बचने न पावे
कर लाख जतन सबहु है, बेकार
छोड़ मोह माया जाना है उस पार
बिनू कहें धीरे से वो निंकर जाएगी ...
घाति दुसमन जान की तौहे, बस ठेगा ही दिखाये गी
पल दो पल माही रोकर सब हीभूल जाएगे....
महल चौबारे,सब एेैही धरै रह जाएगे