हाँ मै पेड़ हुँ..हाँ मै पेड़ हुँ...
किसी पक्षी की बीठ से निकला...
माँ धरती के गर्भ समाया...
सूरज की किरणों ने सहलाया....
बादल की बुंदो ने पाला....
मंद हवाओ ने सहलाया..
हाँ मै पेड़ हुँ..हाँ मै पेड़ हुँ....1
कुदरत मेरे मात पिता...
मैने उनका सिंगार किया..
कही फुल खिलाये
कही फल अपार दिये
मैं कुदरत की प्रेम परीक्षा ...
झेल रहा हुँ इंसा़ को...
मैने उसको सासें दी...
वो मेरी सासें छिन रहा..
मैं पंछी का रैन बसेरा..
इंसा़ सबको लील रहा..
मेरी अाह़..और
उसकी चाह़ का कोई अंत नही
खुद को बाँट रहा..
हम को काट रहा..
पर ये कैसा इंसाफ है
तेरी तो चाहत है पर
कुनबा मेरा साफ है
हाँ मै पेड़ हुँ..हाँ मै पेड़ हुँ....1
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