Saturday, 21 June 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-27


(गुरू महिमा दोहो के साथ) :-
1:- गुरू ही ब्रह्म स्वरूप है गुरू से बडा न कोय ।
गुरू वाणी सिर धर मनुज द्वार कपट के खोल।।
2:- गुरू सागर की सीप है मन रख दीप सजाय ।
हरिहर गुरू उस ब्रह्म से देगा तुम्है मिलाय
3:- गुरू ग्यानी अग्यान बन पकड़ गिरोगे पाव।
हरिहर छन में भँवर से दूर करेगे नाव ।।
4:-गुरू की कृपा अनन्त है काटे गुरू कलेश
हरिहर गुरू में बसत है ब्रह्मा विण्णु महेश
5:- गुरू शरन चल जाईये तज माया अभिमान हरिहर पूरे करेंगे गुरू तेरे अरमान

2. अंहद,न माया न परपंच है..
.अंहद रब का आकार.....
अंहद में वो सहज साकार है....
हरिहर, बाहर वो निराकार... 

3. अंहद अंनत है.न अंनत का कोई छोर,...2
अंहद भीतर रब बसा .न भीतर कोई शोर

4. अंहद में अंनत है हरिहर तु कया बाहर खोजे..
बाहर माया परतंत्र है कुूयू न भीतर की सोचें....

5. आ और पास आ, हरिहर दूरियो में कया रखा है...
जो पास आया उसी ने अंहद का सवाद चखा है

6. तुमें मुझमें अंतर कया...
तुम विष का प्याला पीते हो
हमे जह़र ज़माना देता है
हरिहर,तुम अमर हो...
हमें ज़हर कुडाता बस है

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-26


1. बंधुवर मैने कब कहा मै कुछ सिखाने आया हुँ... 
दुनिया एक अजूबा है देखने और दिखाने आया हुँ....

2. कुुछ सड़ने की बदबू आ रही है....
मित्र कुछ करो तेरा पता बता रही हैै 

अजीब है हम मेरी हाट हैै कुुछ आली,
गर तुझेे पसंद न आए तो.
इस बाजाऱ में और भी दुकाने है चमक वाली.....

3. मेरा कोई शत्रुु नही,.मैं सब को गले लगाता हुँ 
दो कदम तुम बडाओ,आठ कदम मेंं बडाता हुँ

4. तुुझे और मुझे वो काफीर,बुतपरसत कहते है
लखतेजीगर ऐ रब केे,येे बता इन पत्थरो मेें कौन रहते है.

5. चल भाग जीतना भाग सकें ....
देखे तेरी सांसों मे कितना दम है.......
गति तो हरिहर जीवन का नियम है.
मृत जन भागे कहा उसमें दम है.....

6.मुक्त होना सहज हो या कठिन..
मै इस झमेले में नही पढना चाहता....
मुझे हरि हरि करने और करवाने दो,...

7.यात्रा शरीर की शुरुआत है..आ कुछ सीख ले........
तुम मुझसे कुछ सीखो ..कुछ हम तुम सेे .सीख ले....

8. मै हरिहर सीधा पर गधा...
पर खुश,कुयु मुुझे हाँके हरि..

9. माना हरिहर धट में तेरे मल है..
पर धट में ही हर परेशानी का हल है

10.कया खोया है..जिसे ढुंढते हो...
हाँ ढुंढता हुँ मैं खुद में खुदा को...

Wednesday, 11 June 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-25


1.ये तेरी नजर है ..? कया ढुंढती है मेरी परछाई में,..

2.सुख की इच्छा..दुख की जननी है
जो तुमहारे तप को खा जाती है

3. बहुत कुछ तुमहारे आस पास घट रहा है..उसे खोज़ना है या कहो उस पर ध्यान लगाना है..वही बाहरी गुप्त ज्ञान है जैसे पक्षियो की आवाजे़,हवा का संगीत,धरती की खामोशी,और बहुत कुछ जो साकार अनुभव है जो तुमहे भीतर ले जा सकता हैः जहाँ कभी नही पहुचे जानो ईश्वर ने ही तुमहारा हाथ पकडा है यही अंहद के आंनद का प्रथम अनुभव है

4. भ..भक्ति                          न...नमन
ग..ज्ञान                               ा..आंनद
व ..वैराग्य                            व ..वैराग्य
ा..आंनद                               ग..ज्ञान 
न...नमन.....                                                  भ..भक्ति.................महाशुन्य

5. चल हट झुठे,हरिहर कहता है हम प्रेम नही करते..
मेरी तो छोड़ अपनी सांसें देख कम होने लगी है

6.पेठा मिठाई गर सोफट हो तो हर हाथ में जाती है 
......हरिहर वही इंसानियत की भी खुबी होती है

7.हरिहर के चाहने वाले मरा नही करते,..
बंधु रोग तो आना जाना है
मरना ताे शरीर का बहाना है..

8. वो अपने बल पर अभियान करता था..
पर जब पेशाब बंद हो जाता है तब.....?
बल सो जाता है और
अभिमानी रो जाता है

9. चारो और शोर है,..वो जाग गया..
निशचय है,वो मजिंल पायेगा...
परेशान न हो बंधु'''
अहसास़ भी करवायेगा

10.तुमें मुझमें अंतर कया...
तुम विष का प्याला पीते हो
हमे जह़र ज़माना देता है
हरिहर,तुम अमर हो...
हमें ज़हर कुडाता बस है


Sunday, 1 June 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-24


1. मर गये कितने ढुंढते उसे,
मर जायेगे कितने ढुंढते उसे, 
फंकत बाज़ार मै वो मिलने वाली श़ नही

2. बहुत दिन हो गये, तेरी राह़ पर चलते चलते..
ऐ मेरे अजीज़ अब तो दो कदम तू भी बडा ले...

3. मर गये कितने ढुंढते उसे,
मर जायेगे कितने ढुंढते उसे, 
फंकत बाज़ार मै वो मिलने वाली श़ नही

4. तू भी परेशान,हम भी परेशान,..
बा अदब तेरा सबब अलग है..
.हमारा सबब अलग है....
तू खुद के लिए परेशानहै...
हम मिलें,खुदा इसलिए परेशान है.....

5. अहसास है हम को तेरी परेशानियो का...
तेरी परेशानियो के सबब अपनी...
रूह का दिपक जलाते है हम....

6. सच्ची मित्रता का आधार है राम ..
केवट,विभिषण,शबरी का सच्चा प्रेम है राम

7. अगर हिन्दी का प्रयोग करने वाले गवार होते है तो हम गवार ही सही...........

8.


गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-23


1. सवेरे सवेरे बैठते है तुम घेरे...
ये भिखारी सारे...?
शायद तुम पर विश्वास नही..
या तुम उनके पास नही....
अब हम को तेरी जरूरत नही..
कयुकि जान गये हम..
फकत हम पागलो के बिना...
तेरा भी कहा गुज़र है

2. चाह की चाहत ने चाहना सीखा दिया,...
चाहा इस कदऱ,..तेरी चाहत ने.....
दो थे दोनो को एक बना दिया....

3. चाह न होती ग़र...,
तो तू भी मुरीद न होता.

4. खोदते है गढे रोज हम,..
हरिहर दबाने अरमानो को...
पर कया करे आंसू तेेरे...
अरमानो के पेड़ उगाने लगे है....

5. बदल देते दुनिया सारी..
पर समय ही ना मिला.
(ये आज़ के इंसान की सोच है)

6. तेरे लिए जान भी हाजीर है......?
पर कया करे समय का अभाव है..
(ये आज़ के इंसान की सोच है)

7. चल चले जहाँ,प्रेम का संसार हो..
घर घर में मेरे कृष्ण अवतार हो...
पर हरिहर कोई कंस, न .....
भूल से भी इस पार हो

8. शब्द ताकत है तलवार है...
सबसे खतरनाक हथियार है
माना तो भगवान है
माना तो शैतान है

9.दर,और दर्द का रिश्ता पुराना है
दर्द के बिना दर नही मिलता...
और दर मिलकर दर्द नही जाता

10.बहुत दिन हो गये, तेरी राह़ पर चलते चलते..
ऐ मेरे अजीज़ अब तो दो कदम तू भी बडा ले..