Monday, 27 October 2014

वो मालिक, ..........


हरिहर तेरी या मेरी..
औकात ही क्या है...
उस रब के सामने,..
.मिटा देता है वो.....
हजा़रो काय़नात को..
.इक पल में ही...
बनाया है कभी..
इक फूल भी तुने...
बात करता है...
रब होने की...
वो मैं से अंहकार
बना देता है,...
वो तुझसे कितने खुदा
पल मिटा देता है...
वो चट्टान में फूल उगा देता है
मारें हाथी को ..
इक अदनी चीटी...
वो ऐसी तरकीब
बना देता है...
वे रंक को राजा..
.राजा को रंक बना देता है
पल मैं ही वो .
अच्छे.अच्छे को...
उनकी औकात
बता देता है..
सुनकर तेरी खरी खोटी,...
वो मालिक,
मंद मद मुस्करा देता है
मुस्करा कर जो मिटा दे..
अपनी हस्ती..
उनको ही वो .
.अपने घर का पता देता है

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