1. साधना ही मनुष्य को साधु वाद करती है...
नो मोर् गप,ओन्ली फॉर तप
2. सच,.आँसुओ के आये बिन ...
ऐ निष्ठुर तुम भी आते नही.....कन्हैया रख हाथ दिल पर..
बता हंसते हम क्या भाते नही...
चल भाग जा, होगा तू रब
हम रोते फकीर तुझे बुलाते नही
देख मुँह फेरता हम को
काहै कन्हैया मुस्करातै हो...
है ग़र हम इतने बुरे
काहै झांकने आते हो...
3. मै जानू न तू कपटी
पर छलिया तो कहने दे...न बसा दिल मे अपने
चल चरणों मे ही रहने दे....
न लगा मलहम हाथ से.....
इन आँसुओ को बहने दे....
हो तुम अपने सगै साथी
सगै का दिया दर्द सहने दे....
4.डरता हूँ आखो को बन्द करता हुआ
कही प्रभु ओज़ल न हो जाओ तुमहरिहर आँखों से ख्वाबो की तरह
5. कुछ तो पागलपन होना चाहिये हरिहर
के बुद्धि के तर्ककर्ताओ वो मिलता नही
6. ग़र मित्र हो जीवन मे तो सच्चे हो ...
वरना कब्र खोदने वाले तो किराये पर भी मिल जाते है
7. अच्छी माँ सबको मुफ़्त मे मिलती हैं
पर अच्छा मित्र,और अच्छी जीवन साथी अच्छे कर्मो से मिलते है
8. सोचिये,.....
ग़र सत्ता का नशा इतना आनन्द दे सकता है तोउस महासत्ता दारी के संग का आनन्द तो परमानन्द ही होगा......
सत्ता नशे की सीमा और समय निर्धारित हैं
परमानन्द की न सीमा है न समय की कमी
9. हमारे भीतर एक सिनेमा है
हमारे भीतर भी चल चित्र दिखाई देते हैसिनेमा की तरह हमारे भीतर भी अंधकार है
सब कुछ भीतर है बस कमी है तो प्रयास की
10.सत्य है की चमत्कार होते हैं
किन्तु तभी जब भीतरी तपस देह को तपाये.....
तुम को जलना होगा और जलाना होगा
बस भीतरी अगन को....
11.कोई हमे मुर्ख कब बनाता है...?
जब हमारी बुद्धि भरमाती है...विवेक हताश हो जाता है...
और मन चमत्कार की आशा रखै
No comments:
Post a Comment