Friday, 11 September 2015

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:- 58


1. शुद्ध शरीर कर, समाज को अर्पण करे
शुद्ध कर ,आत्मा परमात्मा को अर्पण करे
यही तुम्हारा सात्विक कर्म है 
यही तुम्हारा जन्म लेने का उदेश्य...

2. भारी ज्ञान अपच भोजन की तरह हैं
भोजन पेट,भारी ज्ञान बुद्धि खराब करता है
भोजन व् बात वो हो जो पच जाये

3. जब सब कहै की आप अच्छे है तो जानो
अभी जंग साफ नही हुआ अभी काम बाकि है
जब कोई बार-बार मिलने को चाहे रह न पाये
समझो अब फल पक गया बस समर्पण बाकि है

4.न भगवान दूर है न पास है
बस भर्मित तुम्हारा विश्वास है

5.सब से असान क्या हैं...?
दूसरो मे कमियां निकलना
सब से कठिन क्या है....?
अपनी कमियाँ सुधरना

6. अपमान ज़हर से भी घातक है
जो पच गया वो पुरषार्थी नायक है
जो न पचा सका वो कायर खलनायक...

7. मौसम की तरह रिश्ते भी 
मित्रो रिशने लगते है
कुछ पैसे की गर्मी दिखते है
कुछ बिजली सी पावर दिखते है
है जो गरीब वो मित्रो
सर्दी से सुकड़ जाते है
8.  इन्सान को ही पूजने का मन हैं तो स्वयं को ही पूजो
ग़र कोई भी अवतार हो सकता है तो तुम क्या दुनिया मे झक मराने आये हो क्या तुम्हारे भीतर परमात्मा नही है
तुम स्वयं परमात्मा हो
जो खोजना है भीतर खोजो
भीतर का जब बाहर आयेगा सब साकर नजऱ आयेगा
9. कौन बाहर,कौन भीतर
कौन ख़ोजे,किसको ख़ोजे
नाव नदियां,नदियां नाव
कहा जाता सारा बहाव
सारा चक्कर है घनचक्कर
सीधा उल्टा,उल्टा सीधा
गोल गोल सब है बोलः
समझ गया तो सब तेरा
न समझा तो लगै फेरा

10. राहे कहा आसन होती है.....,
फिर भीतर की हो या बाहर की
चमक तो लानी ही होगी मित्रों
इस लिये रग़ड़ तो खानी ही होगी...

11. ध्यान का दीपक ही भीतरी अंधकार को मिटा सकता है

No comments:

Post a Comment