जग के तुफानो में
मजबूत पेड़ भी उखड़ते,..
फिर अंकुरित हो जड़ो से,
नये तनै बनते है,...
मिट जाती हैं जल कि धारा
जो कल कल कर बहती,..
सूर्य ऊष्मा से हो वाष्पीकरण,..
बादल के संग
फिर वर्ष बन बहती है
ये जींवन की धारा हैं
मिटती बनती रहती हैं
इसी चक्र को दुनिया
माया माया कहती हैं
वो काल नैत्र अंधा,...
हरिहर बिन समझे ही
मर जाता है,..
मिटने वाली चीजों
को अपना माल बताता है
वो पगला क्या जाने
सुखी रेत को जग मे
यहा कौन बांध पाता हैं
अन्त काल मे,..
मन का पँछी भी
बिन कहै ही
उड़ जाता हैं
रोज़ सवेरे उठते है
वो तुझको
आयना दिखलाता हैं
नाजाने कब
बचपन पर बुढापा
सा छा जाता हैं
Swami Harihar " Anhadyogi"
Anhad yog is the best way to solve many problems .the spritual way is based on a simple understanding if we practised on ANHAD YOG .then we realize that the GURUS who showed us this path were the greatest wealth and most valuable treasures of us and by the help of ANHAD YOG we should aware ourself ..with regular practise we can feel real peace of mind .....
Wednesday, 17 July 2019
जींवन हैं साहब
वैदिक संस्कृति का सफर
सोचे...........?..
वैदिक संस्कृति का सफर पुरापाषाण युग से भी पुराना है
वक्त के साथ परम्पराये बदलती गई,..
आलस्य और ईश्वर को पाने के छोटे रास्ते ने सनातन,आर्य,फिर हिन्दू और न जाने कितने नाम बदल कर वैदिक संस्कृति की हत्या कर दी, वैदिक कुल यानि ऋषि कुल परम्परा लोप होने लगी
सनातन, आर्य,हिन्दू न जाने कितने अलग अलग सम्बोधन मिले,वह शब्द जो आज हमें अपने लगते है यह सभी शब्द आततायीयो के दिये है जो वैदिक परम्परा को समाप्त करना चाहते थे जो कहि कहि गाली के रूप मे भी इस्तेमाल हुए, बरहाल 1200 लगभग वर्षो में इस्लाम के कटरपंथियो ने हिन्दू का नाम दिया,
किसी आततायी ने हमें रशियन आर्य कहा, किसी ने सनातन, पर सच यह कि हम हिंदू आर्य,सनातन,से पहले वैदिक परम्परा के अनुयायी हैं जो पूरे विश्व मे फैला था पुराणों से भी पहले थे तो बस वेद, आज हमारे पास वैद नही है जो 150 वर्ष पहले चोरी करा दिये गये
Monday, 31 December 2018
ऐ रब
ऐ रब
मेरे हिस्से की तमाम खुशियां
मेरे उस मुरीद के नाम कर,
जो याद करता हैं मुझे,..
अपनी हर मुसीबत मे ही सही,...
ऐ रब
तमाम ग़म,परेशानियां...
उसकी हमको दे..
जो था भूल गया अपनी
मस्त रवानी मे,...
ऐ रब
रहमत कर उसकी
हर सच्ची झूठी कहानी पे,
जो बया करती आंखे...
आंसुओ से लदी हुई
ऐ रब
क्या फर्क है फ़क़ीर और
फ़रिश्ते मे,..
तेरी आस मेरी सांस है
जो हैं औरो के लिये,..
ऐ रब
फ़टी रहने दे
झोली फ़क़ीर की,..
ग़म निकल गये
खुशी बाँट दू बिखरे से पहले
Thursday, 10 December 2015
गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:- 61
.1. कुते को घी हज़म नही होता.......
हरिहर बईमान और भ्र्ष्ट को इज्जत.....
हरिहर हारे यौद्धा के धर कौन जाये
हरिहर मन्दिर रोज सर झुकाने से सम्पन्नता आती है
हरिहर मन के चोर के घर न कभी बरक़त आये
सती नारी घर मे ही स्वर्ग
बदनाम गली का कुत्ता हो गया
जब की तलवे चाटने लगे लोग
देते है सियारो को लोग गालियां
पर अपनों की भी बोटियाँ नोचते हैं लोग
अच्छे हैं हम से जंगल के जानवर
हमने जंगल समाज को बना दिया
तलाश करना ही बड़ी बीमारी हैं
समर्पित हैं जो इस मित्रो जग मे
वहीँ सच्चा ईश्वर का अधीकारी हैं
बईमान पहले ही कहते...
यू मिट्टी न रुसवा होती...
Thursday, 17 September 2015
गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:- 60
1.मन्दिर -मन के अंदिर
मन के अंदिर जो है वही परमसत्ता है
मन-यानि मनन
मनन यानि ममता, नर्मता, बीच नयन
क्या दूसरे के लाल गाल देखकर आप भी
अपने गाल लाल करतै है...?
ग़र ऐसा है तो सुबह सुबह कूड़ा चुगने वालो को
सबसे पहले मिलेगा..)
क्युकि वो तो सारा दिन की ख़ोजतै है..?
खोजने की आवश्यकता उसे जो खोया हो...
क्या तुम्हारा परमात्मा खो गया है......?
वो भीतर भी है वो बाहर भी...
एक वही तो है जो है....
बाकि क्या है शनभंगुर......
स्वामी हरिहर :-
न तलवे चाटुता मै अपना नाम लिखा
कद बड़ा, बस तू अपना कद बड़ा..
सच है सम्मान के बदले सम्मान दे
पर न किसी की बातो के जूते खा
हरिहर सच क्या नही बन्दे तुझमे
गर्व से तू भी अपना सर उठा
गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:- 59
1. कौन हारा कौन जीता
क्या है किस्मत कनैक्शन
जाने दो मित्रो क्यु लेनी टेंशन
कुछ तो राज़ को राज़ रहने दो
नदियां है इक जीवन भर
उसको मस्ती मे बहने दो
सब रब की महिमा है मित्रो
कुछ तो काम उसके
हाथ मे रहने दो
बातो को बस
बाते ही रहने दो..
न ताने होने दो..
हो भी तो ग़र तान
तो तान सुर की
रब से हो जाने दो
छोड़ो बातो को...
बातो का संसार
नही होता....
केवल करते है जो
बाते ही बाते...
उनका सार नही
उनका प्यार नही होता
बातो का रब से
कोई तार नही होता
बाते तो बाते है
बातो का कौई मित्र
या अधिकार नही होता
मुफ़्त सबक दे गया
Friday, 11 September 2015
गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:- 58
1. शुद्ध शरीर कर, समाज को अर्पण करे
शुद्ध कर ,आत्मा परमात्मा को अर्पण करे
यही तुम्हारा सात्विक कर्म है
यही तुम्हारा जन्म लेने का उदेश्य...
भोजन व् बात वो हो जो पच जाये
जब कोई बार-बार मिलने को चाहे रह न पाये
समझो अब फल पक गया बस समर्पण बाकि है
सब से कठिन क्या है....?
अपनी कमियाँ सुधरना
जो न पचा सका वो कायर खलनायक...
कुछ पैसे की गर्मी दिखते है
कुछ बिजली सी पावर दिखते है
है जो गरीब वो मित्रो
सर्दी से सुकड़ जाते है
तुम स्वयं परमात्मा हो
जो खोजना है भीतर खोजो
भीतर का जब बाहर आयेगा सब साकर नजऱ आयेगा
नाव नदियां,नदियां नाव
कहा जाता सारा बहाव
सारा चक्कर है घनचक्कर
सीधा उल्टा,उल्टा सीधा
गोल गोल सब है बोलः
समझ गया तो सब तेरा
न समझा तो लगै फेरा
चमक तो लानी ही होगी मित्रों
इस लिये रग़ड़ तो खानी ही होगी...