Saturday, 27 December 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-50


1.जाँच मन को और कहा क्या रखा है
हरिहर जो भी रखा है यही रखा है

2.मैं हरि गुण गाऊ ....
मै तेरी शरण आऊ....
कृपा करो प्रभु हम पर.....
जियूँ,मरू बस तेरे दर आऊ

3.परेशानिया ही बड़ाती है
बदलती रोशनियां तेरी
आ छान ले रोशनियाँ
मिलाकर सबको हम
हरिहर एक रब बना ले

4.रोज़ ही मर रहे है लोग
पर बहाने अनेक है
होता मराना ही ज़िहाद
तो क्या जरूरत थी
उस रब को बनाता 
ये जहाँ इंसानो का

5.मिट गई है भुख 
अब सम्मान की
न डर अपमान का रहा
हो रहा है तंग घेरा
मेरे नसीब का
उठ उठ कर रातो को
ढुंढता हूँ अक्ष तेरा
कमी बस रह गई इतनी
पत्थर ही मरगे अब लोग
हो रहा हैं तंग घेरा
मेरे नसीब का
घेर लेती है परेशानिया
होता हूँ जब भी करीब
नसीब के..
द्वन्द भी नही रहा
मन का और मनके का
आ गई तन्हाईया
मेरे नसीब की
मन लू
ग़र कह दे
कि हाँ तू
मेरे करीब है

6.तुम सफल व्यक्तियो को अपना आदर्श मानते हो अच्छा है
पर सही शिक्षा तो असफल व्यक्ति से मिलती है
किन राहो से बचना है

7.रामचरित्रमानस के अनुसार मित्र से
जब भी मिलो सुग्रीव सम मिलो
जो मित्रता के लिये सब कुछ छोड़ देता है
सेवा भाव हनुमान से त्याग लक्ष्मण पत्नी से
चरित्र पालन राम सम एक पत्नी धारी आज्ञापालक न्यायकर्ता
कथा मे नारी महिमा तो अंत है सीता मन्दोदरी शबरी उर्मिला मेंघनाथ की पत्नी को कौन भूल सकता है हिंदू साहित्य अमर है जो सर्व समाज को उत्तम चरित्र की शिक्षा देता है

8.जब कोई आप की प्रशन्सा करे तो खुश होना सौभाविक है
पर जब कोई आलोचना करे,गाली दे
तो परेशान न हो आप किसी के मन की गन्दगी साफ कर उसके मन को साफ कर रहे। है

9.चंडाल वो है जो केवल अपने भोग के विषय मे ही सोचता है
साधक वो है जो केवल बस केवल योग के विषय मे सोचता है
उपासक वो है जो केवल अपने मोक्ष के विषय मे ही सोचता है
हरि नाम का पागल कुछ नही सोचता...
उसका हरि सब कुछ सोचता है
हरिहर, कहै शंकर सुनो पार्वती दर मन मे विश्वास
कर्ता ही कर्म है सब लेखा हरि के पास

10.दो आँसू आज निकल आये
सोच सोच हरि का नाम
बदल रहा पापी मन को
है न ये प्रभु तुम्हारा काम


Monday, 22 December 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:49


1.पेट की भूख भोजन से शांत होती है 
आत्मा की भूख भजन से शांत होती है

2.मन मे झाँक तो सही
हरिहर उसे ही पायेगा 
कण कण मे है वो ही
वो परमेश्वर कहा जायेगा

3.प्रेम पवित्र है तो ताकत है
प्रेम मे वासना हो तो बीमारी है

4.मित्र महान शब्द है ग़र मानो तो
मित्र संस्कृत के ज्ञान कोष से
प्रकटा है मित्र,मैत्ररि से बना है
म....मन
त्र....त्रिप्ती
रि...रिश्ता
मन को तृप्त करने वाला रिश्ता
जो माँ के बाद दूसरे नम्बर पर
आता है

5. मैं अच्छा हूँ कहने से क्या होता है
मज़ा तो तब हैं जब दुश्मन भी कहने लगे
वाह।....क्या इन्सान है

6. कौन सा खुश होता है रब...?
मासूमो की मोत पर
युही बदनाम करते है कुछ लोग
अपने मतलब के लिये..
हम इंसा है हिन्द के
मरे ग़र दुश्मन भी कोई
दो आसु बहा लेतै है
हम ग़ैरों को भी कन्धा दैतै है
ये सिखाया है हमे गीता ने
हम गैरो को भी अपना लेतै है

7.सच तो सच है
कहा पाप समाये
पाप तो पाप है
कौन पचाने पायै

8.तू ले आ अल्लहा 
मे ले आऊ राम
दोनों को मिला के देख
दोनों का एक ही परिणाम

9.अंनुभव करके देखो
खुद कहोगे ईशवर ग्रेट है
वो ही सब का भरता पेट है

10.दुर्लभ जीव कम हो रहे है
सच्चै लोग भी मिट रहे है
सच्चे लोग बचे तो 
सब बच सकता है
यदि आपके आस पास
सच्चे लोग हैं
तो सम्भलकर रखै
यह थोड़े कड़वे हो सकतै है
पर आपके लिये लाभकारी होंगे



गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:48


1. सम्भालकर रख आंसुओ को
हरिहर काम आयँगे 
करुणा का वेग है आंसू 
यह ही तुम्हे रब से मिलायेंगे

2.तेरे अल्फ़ाज तेरी औकात बयाः करते है
हैं वो शतिर जो कुछ कहने से ड़रते है

3.न हिन्दू की बात कर
न मुसलमान की बात कर
कर हैवानियत से तौबा
बस इंसानियत की बात कर

4.हरिहर आस न हो पूरी तो आँसु आते है
प्रेम बने तपस्या आँसु मोती बन जाते है

5.सुंदर ज़मी सुंदर ही आसमां होता है
पर सबका अपना अपना समाः होता है

6.हरिहर फाड़ दो उन पन्नों को
जो उसके नाम पर लड़ना सिखाये
क्या करना उस पंथ धर्म का
जो मानवता को मिटाये
मेरा धर्म तो ये कहता है
रब सब के मन मे रहता है

7.हमारी सोच समाज का निर्माण करती है
हमारा समाज संस्कारो का निर्माण करता है
संस्कारो से संस्कृति का निर्माण होता है
संस्कृति से धारणा जन्म लेती है
धारणा से धर्म का जन्म होता है

8.एक हाथ ले
एक हाथ दे
यह व्यापार होता है
दे बस दे 
यह मानवता का
व्यापार होता है
यह सच्चा धर्म
का संस्कार होता है

9.पहले पहल हम दो थे
अंजान किसी मन के कोने मे
आज हम एक है प्रभु
हरिहर मन के न होने मे

10.तू अपना पता दे
मैं अपना पता दूँगा
तू अपनी परेशनिया दे
मैं अपने हिस्सै की खुशियां दूंगा

Monday, 15 December 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:47


1.दृढ़ आत्मविश्वास के बिना 
इश्वर को पाना असम्भव है

2. विवेकहिंम् पशुभिः समानम:

3. प्रेम की परिभाषा अलग अलग हो सकती है
पर प्रेम की प्राप्ति बिना करुणा के नही हो सकती

4.  इच्छाओ का बढ़ना 
फिर पाने को तड़पना
न मिलने पर रब को कोसना
यही हारे मन की पहचान है

5.कोई कुछ दे,प्रेम से लो
अच्छा बुरा खुद छान लो

6. चिंतन अतित का विषय है
भुत भविष्य चिंता का विषय है

7. मैं कहा कुछ कहता हूँ
मै तो बस चुप रहता हूँ
कहने वाला तो कोई और है
जिस का चारो और शोर है
कहते जिसे चित चोर है

8. त्याग का जन्म सन्तोष से होता है
सन्तोष का जन्म विवेक से
विवेक का जन्म ध्यान से
ध्यान का जन्म साधना से 
साधना का जन्म कीर्तन से

9. ज्ञान मे बुद्धि और शुद्धि परम् आवश्क है

10.विवेक की मृत्यु ,देह का विनाश है

11. अधात्म गहराइ का विषय है ऊचाई का नही
भीतर और भीतर उतरना, और उतरतै जाना
चढ़ता तो नशा है फिर वो कैसा भी हो

12.जब नही थी किताबे
तब भी थी तेरी चर्चा
तब भी शब्द विवेक थे
आज भी अंहद विवेक है
शब्द भी अनेक है
फिर किताबो का क्या करना

13. वाद मे विवेकहिनता :-विवाद का जन्म
विवाद मे आक्रमक रूप :-अपवाद का जन्म
अपवाद मे हिंसा: विनाश का जन्म

14.

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:46


1. वाद मे विवेकहिनता :-विवाद का जन्म
विवाद मे आक्रमक रूप :-अपवाद का जन्म
अपवाद मे हिंसा: विनाश का जन्म

2. हमसे तो कछुए अच्छे
जो अपने शैल मे जाते है
हम भीतर जाने से 
जाने क्यु घबराते है
गहरे समुन्द्र मे है मोती
पर भीतर जाने वाले पाते है
बाहर तो केवल लोग
ख़ाली शैल ही पाते है
अब तो हरिहर इस
मिट्टि को पकनै दे
देह को अनंत का
मीठा स्वाद चखने दे

3. न यूँ किसी पर हँस
वो सब को देता है
अपने पर आये तो
चमड़ी भी उतार लेता है

4. सच,इक अश्रु करुणा का बहा
देख सब है भीतर
बस इक बार भीतर तो आ

5.भीतर वो है जो बाहर नही
बाहर सब कुछ नही
भीतर वो है जो सोच और परिकल्पना
से भी परे हैं
भीतर तुम्हारै हर प्रश्न का उत्तर हैं
तुम्हरा अपना निजी ईशवर
भीतर तुम्हारा ध्यान कर रहा हैं
तुमहारे अंत का अनन्त भीतर है
मिटते बनते ब्रह्माण्ड
समय का बदलता रूप

6. जहाँ प्रेम है वहाँ खुशियां अपने आप आती है
जहाँ केवल मांग है वहाँ का दुःख कभी नही जाता

7. मानों तो भगवान
मानों तो शैतान
मानों तो गंगा माँ है
न मानों तो बहता पानी
पर मानना तो नही है
जानना है
जानने पर ही पता चलता है
वो भगवान है या शैतान
जानना अंहद की खोज है
जानना मार्ग है मानना अंदविश्वास
मानना भ्रम है
जानना ब्रह्म है
ईशवर जानने का विषय है
मानना भेड़ चाल
वो मानने वालो को नही मिलता
वो केवल जानने वालो को मिलता है

8. मानना जानना ...? 
शब्दकोश के दो शब्द है किंतु मानना भेड चाल है मानना धोखा,....
जानना खोज़ है अंहद की यात्रा है जानना सत्य है

9.सच्चे सुख का आनन्द सन्तोषी जन ही पाता है

10. यदि घर मे प्रेम है तो मानों स्वर्ग धरती पर हैँ

Monday, 8 December 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:45



1.न फसाँ भीड़ मे हमे
रहने दे,प्रभु 
दम घूँटता है
जानता है मन
तन्हाइयो मे रब मिलता है

2. मै नही कल की चिंता करता,..
कुयू कल देखा है किसी ने...?
सांस का नाम आज है 
सांस गई काल आया कल गया

3.यु तो रब ने दी है सांसे किमती,..
मेरी सादगी फकीरी की देन है,.

4.आत्मा ही परमात्मा ..
देह में वो समाये ..
फिर भी इंसान से इंसान
कुयूकर हरिहर बैर कमाये

5.मृग त्रिष्णा मानव बीच समाये
झूठे सच्चे सपने देखता जाये

6. जो दुसरो के अन्धेरे मिटातै है
राम उन्हे ही नजर आते हैं

7.सुख की चाह ही दुःख का कारण है
मोह का त्याग दुःख का निवारण है

8. ईशवर कहा नही,जहाँ भाव नही

9.क्रोध और बुद्धि कभी एक साथ नहीँ रहते

10.राम रोम मे
कृष्ण करुणा मे
हरि,हर मे
शिव श्वांस मे
ये ही विश्वास है
ये ही भाव है
वहीँ सब मे

11.निजी माँग चाहे वह् क़ैसी भी हो
भौतिक या आधात्मिक 
वह् सुख है वही मोह है
माँग का मिटना मोक्ष है
वही देह और आत्मा का कर्म

12.घबराये नही, जब लोग तुम पर हँस
घबराये नही जब लोग
तुम पर उंगलियां उठाये
हाँ जाँच अवश्य करना
मन के दर्पण।मे
क्योक़ि तुममे क्षमता है
समाज को कुछ नया
सिखाने की

13.अक्षर अणु है 
शब्द परमाणु का समुह
जो निर्माण और निर्वाण 
दोनों कर सकता है
जो कहो सोच कर कहो