1. वाद मे विवेकहिनता :-विवाद का जन्म
विवाद मे आक्रमक रूप :-अपवाद का जन्म
अपवाद मे हिंसा: विनाश का जन्म
2. हमसे तो कछुए अच्छे
जो अपने शैल मे जाते हैहम भीतर जाने से
जाने क्यु घबराते है
गहरे समुन्द्र मे है मोती
पर भीतर जाने वाले पाते है
बाहर तो केवल लोग
ख़ाली शैल ही पाते है
अब तो हरिहर इस
मिट्टि को पकनै दे
देह को अनंत का
मीठा स्वाद चखने दे
3. न यूँ किसी पर हँस
वो सब को देता हैअपने पर आये तो
चमड़ी भी उतार लेता है
4. सच,इक अश्रु करुणा का बहा
देख सब है भीतरबस इक बार भीतर तो आ
5.भीतर वो है जो बाहर नही
बाहर सब कुछ नहीभीतर वो है जो सोच और परिकल्पना
से भी परे हैं
भीतर तुम्हारै हर प्रश्न का उत्तर हैं
तुम्हरा अपना निजी ईशवर
भीतर तुम्हारा ध्यान कर रहा हैं
तुमहारे अंत का अनन्त भीतर है
मिटते बनते ब्रह्माण्ड
समय का बदलता रूप
6. जहाँ प्रेम है वहाँ खुशियां अपने आप आती है
जहाँ केवल मांग है वहाँ का दुःख कभी नही जाता
7. मानों तो भगवान
मानों तो शैतानमानों तो गंगा माँ है
न मानों तो बहता पानी
पर मानना तो नही है
जानना है
जानने पर ही पता चलता है
वो भगवान है या शैतान
जानना अंहद की खोज है
जानना मार्ग है मानना अंदविश्वास
मानना भ्रम है
जानना ब्रह्म है
ईशवर जानने का विषय है
मानना भेड़ चाल
वो मानने वालो को नही मिलता
वो केवल जानने वालो को मिलता है
8. मानना जानना ...?
शब्दकोश के दो शब्द है किंतु मानना भेड चाल है मानना धोखा,....जानना खोज़ है अंहद की यात्रा है जानना सत्य है
9.सच्चे सुख का आनन्द सन्तोषी जन ही पाता है
10. यदि घर मे प्रेम है तो मानों स्वर्ग धरती पर हैँ
No comments:
Post a Comment