Saturday, 20 September 2014

न रब कोई भेद बनाता,..

न दाम बडा न नाम बडा...
सबसे बडा है तेरा काम..
सब कर्मो का लेखा जोखा...
बाकि सब है ...
तेरी आँखो का घोखा..
कर्म गति सबकर दिखावे
सुख-दुःख का चक्र चलावे...
जो तेरा सुख वो किसी का दुःख..
जो तेरा दुःख वो किसी का सुख..
पर भेद समझ न पाये...
तू फल खाये..
फल तूझको खाये...
हिरण खाये पाती,
हिरण को शेर खा गया..
खा गया शेर को घाती...
पर दुनियाँ यु ही चल जाती..
जीवन एक चक्र है मित्रों..
मिटते सब बारी बारी.....
भ्रम को ब्रहम खाता..
ब्रहम को भ्रम .खावें....
कोई छोटा कोई बडा...
सब कर्म गति का खेल,..
ईश्वर तेरे घट में वासे,..
बाहर फिर भी ढुढे हम,..
बस नज़र नज़र का भेद है..
न कोई माया कौ खेल,..
कोई छोटा कोई बडा,..
सब कर्म गति का मेल,..
माँ बनाती बेटा खाता,..
कुयू कर पेट माँ का भर जाता,.?
झाडी को कोई पुछे नाही,..
कुयू बडा पेड जलने के काम आता..
जो बडा वो पीडा भी बडी पाता,..
कौन गरीब किडनी बदलवाता,..
भाई सब तेरी नज़र का भेद है,..
न रब कोई भेद बनाता,..
अंहद में जाते नही,..
प्रभु पर कुयू कर ऊगली उठाता,..
वो रोग से पहले दवा बनाता,..
प्रश्न से पहले ऊतर लाता,..
पर हरिहर कुयू न तू भीतर आता..
हर प्रश्न को है ऊतर की आस,.
कैसे लेती देह मिटटी,..? सांस,...

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