Saturday, 29 November 2014

गंगा माँ है या नदी....?


भिन्न भिन्न लोग
विचार भी अनैक है
गंगा माँ है या नदी
यहाँ भावना ही विवेक है
कौन अमर है दुनियां मे

मिटना तो अभिषक है
रो पडा था सत्यवादी
बिक रही थी तारा.
कपडा तन पर जब एक था
वो कायरता नही..
उनका विवेक था...
पत्थर में निकले हरि,..
मित्र वो अनपढ किसान,...
जाट धना का विवेक था...
बने प्रभु सारथी,..
माँग नही,.
बस कृष्ण का विवेक था
समय के रंग अजीब है,..
आज कायरता के रंग,..
मानव भी अजीब है
चमडे की जुबान,..
हरिहर,अदमरे लोग,
हमको कया,कहते है
कर्महीन सोच,
कर्महीन विवेक है
मरी आत्मा,.
मरा समाज का विवेक है
न दया, भाव से खाली,..
बस मोटे मोटे उपदेश है,..
मित्रो ये कैसा आज का विवेक है
गंगा माँ हो या नदी,...
मेरा समान,मेरा विवेक
है..

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