Saturday, 29 November 2014

इतना सहज नही गंगा को लाना

इतना सहज नही गंगा को लाना
चमड़ी उत्तर जाती है 
हरिहर रगड़ खाते खाते
नही विश्वास तो जरा 
भगीरथ क़ी दशा देखो
पीढीया मिट गई
गंगा को लाते लाते
इतना सहज नही है
गंगा को मिटाना
यूँ क़ी बाकि है अभी
यमुना क़ी तरह
नाले का रूप बनना
कहते है सड़ता नही
गंगा का जल रखै
यु ही सदियो सदियो
फिर क्यू सड़ जाती है
मानसिकता यूँ हमारी
रो पड़ता भागिरथ भी
देखकर गंगा की दशा
क्या यू ही मिटना लेख है
नारी और नदी का सदा
सदियों से तारती सबको
वो अपने स्वरूप को तरसे

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