इतना सहज नही गंगा को लाना
चमड़ी उत्तर जाती है
हरिहर रगड़ खाते खाते
नही विश्वास तो जरा
भगीरथ क़ी दशा देखो
पीढीया मिट गई
गंगा को लाते लाते
इतना सहज नही है
गंगा को मिटाना
यूँ क़ी बाकि है अभी
यमुना क़ी तरह
नाले का रूप बनना
कहते है सड़ता नही
गंगा का जल रखै
यु ही सदियो सदियो
फिर क्यू सड़ जाती है
मानसिकता यूँ हमारी
रो पड़ता भागिरथ भी
देखकर गंगा की दशा
क्या यू ही मिटना लेख है
नारी और नदी का सदा
सदियों से तारती सबको
वो अपने स्वरूप को तरसे
चमड़ी उत्तर जाती है
हरिहर रगड़ खाते खाते
नही विश्वास तो जरा
भगीरथ क़ी दशा देखो
पीढीया मिट गई
गंगा को लाते लाते
इतना सहज नही है
गंगा को मिटाना
यूँ क़ी बाकि है अभी
यमुना क़ी तरह
नाले का रूप बनना
कहते है सड़ता नही
गंगा का जल रखै
यु ही सदियो सदियो
फिर क्यू सड़ जाती है
मानसिकता यूँ हमारी
रो पड़ता भागिरथ भी
देखकर गंगा की दशा
क्या यू ही मिटना लेख है
नारी और नदी का सदा
सदियों से तारती सबको
वो अपने स्वरूप को तरसे
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