Thursday, 22 May 2014

गीता सार - सरल जीव उपयोगी उपदेश:-21


1. हम नही परेशा़, कहने को खयाल अच्छा है..
वरना तुम कया परेशा़नियो से बचा ...
हरिहर ...खुद खुदा भी नही

तू भी परेशान,हम भी परेशान,..
बा अदब तेरा सबब अलग है..
.हमारा सबब अलग है....
तू खुद के लिए परेशानहै...
हम मिलें,खुदा इसलिए परेशान है.....

3. कौन आया मेरे दर तेरा अहसास लिए....
जी चाहता है रूह भी उस पर वार दूँ.....

4. अहसास है हम को तेरी परेशानियो का...
तेरी परेशानियो के सबब अपनी...
रूह का दिपक जलाते है हम....

5. सच्ची मित्रता का आधार है राम ..
केवट,विभिषण,शबरी का सच्चा प्रेम है राम

6. प्रेम की परिभाषा क्या है हरिहर जरा बताओ तो..
प्रेम परिभाषाओ से मुक्त है ग़र तुम समझ पाओ तो

7. हरिहर हरि तुम हरो जन की भीर,
कलजुग माही रोग अति गमभीर..
रोग अति गमभीर जन जन को सतावें..
तन बना तनाव,मन कहा मुक्तिबोध पावैं

8. प्रेम सिखाती है हिंदी,
सबको अपनाती है हिंदी..
विश्व भाषा की जन्म दाता..है हिंदी,
हर भेद मिटाती है हिंदी

9.अगर हिन्दी का प्रयोग करने वाले गवार होते है तो हम गवार ही सही........

10. परिंदे भी रूठ जाते हैं...
पर लौट कर घर ही आते है..

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